रामचरितमानस- जानिये भाग-16 में क्या क्या हुआ

श्री रामचन्द्राय नम:

पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं

मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्।

श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये

ते संसारपतङ्गघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः॥

 

श्री रामगुण और श्री रामचरित्‌ की महिमा 

गोस्वामी जी आनंदकंद भगवान श्रीराम के चरित्र और उनके श्रेष्ठ गुणों का बखान करते हुए कहते हैं —-

 

श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥

 

श्री रामजी की गूढ़ कथा के वक्ता और श्रोता दोनों ज्ञान के खजाने होते हैं। मैं कलियुग के पापों से ग्रसा हुआ महामूढ़ जड़ जीव भला उसको कैसे समझ सकता था?॥

 

तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥

 

जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥

 

जैसा कुछ मुझमें बुद्धि और विवेक का बल है, मैं हृदय में हरि की प्रेरणा से उसी के अनुसार कहूँगा। मैं अपने संदेह, अज्ञान और भ्रम को हरने वाली कथा रचता हूँ, जो संसार रूपी नदी के पार करने के लिए नाव है॥2॥

बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥

 

रामकथा पण्डितों को विश्राम देने वाली, सब मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और कलियुग के पापों का नाश करने वाली है। रामकथा कलियुग रूपी साँप के लिए मोरनी है और विवेक रूपी अग्नि के प्रकट करने के

लिए अरणि है ।

 

रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥

सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥

 

रामकथा कलियुग में सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली कामधेनु गौ है और सज्जनों के लिए सुंदर संजीवनी जड़ी है। पृथ्वी पर यही अमृत की नदी है   और भ्रम रूपी मेंढकों को खाने के लिए सर्पिणी है॥

 

असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥

संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥

 

यह रामकथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करने वाली और साधु रूप देवताओं के कुल का हित करने वाली पार्वती है। यह संत-समाज रूपी क्षीर समुद्र के लिए लक्ष्मीजी के समान है और सम्पूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है॥

 

जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥

रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥

 

यमदूतों के मुख पर कालिख लगाने के लिए यह जगत में यमुनाजी के समान है और जीवों को मुक्ति देने के लिए मानो काशी ही है। यह श्री रामजी को पवित्र तुलसी के समान प्रिय है और तुलसीदास के लिए हुलसी  के समान हृदय से हित करने वाली है॥

 

सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी॥

सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी॥

 

यह रामकथा शिवजी को नर्मदाजी के समान प्यारी है, यह सब सिद्धियों की तथा सुख-सम्पत्ति की राशि है। सद्गुण रूपी देवताओं के उत्पन्न और पालन-पोषण करने के लिए माता अदिति के समान है। श्री रघुनाथजी की भक्ति और प्रेम की परम सीमा सी है॥

 

रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।

तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥

 

भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं कि रामकथा मंदाकिनी नदी है, सुंदर (निर्मल) चित्त चित्रकूट है और सुंदर स्नेह ही वन है, जिसमें श्री सीतारामजी विहार करते हैं॥

 

रामचरित चिंतामति चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥

जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥

 

भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी का चरित्र सुंदर चिन्तामणि है और संतों की सुबुद्धि रूपी स्त्री का सुंदर श्रंगार है। श्री रामचन्द्रजी के गुण-समूह जगत्‌ का कल्याण करने वाले और मुक्ति, धन, धर्म और परमधाम के देने वाले हैं॥

 

सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥

जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥

 

ज्ञान, वैराग्य और योग के लिए सद्गुरु हैं और संसार रूपी भयंकर रोग का नाश करने के लिए देवताओं के वैद्य (अश्विनीकुमार) के समान हैं। ये श्री सीतारामजी के प्रेम के उत्पन्न करने के लिए माता-पिता हैं और सम्पूर्ण व्रत, धर्म और नियमों के बीज हैं॥

 

समन पाप संताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के॥

सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के॥

 

पाप, संताप और शोक का नाश करने वाले तथा इस लोक और परलोक के प्रिय पालन करने वाले हैं। विचार (ज्ञान) रूपी राजा के शूरवीर मंत्री और लोभ रूपी अपार समुद्र के सोखने के लिए अगस्त्य मुनि हैं॥

 

काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के॥

अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥

 

भक्तों के मन रूपी वन में बसने वाले काम, क्रोध और कलियुग के पाप रूपी हाथियों को मारने के लिए सिंह के बच्चे हैं। शिवजी के पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं और दरिद्रता रूपी दावानल के बुझाने के लिए कामना पूर्ण करने वाले मेघ हैं॥

 

मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के॥

हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥

 

विषय रूपी साँप का जहर उतारने के लिए मन्त्र और महामणि हैं। ये ललाट पर लिखे हुए कठिनता से मिटने वाले बुरे लेखों (मंद प्रारब्ध) को मिटा देने वाले हैं। अज्ञान रूपी अन्धकार को हरण करने के लिए सूर्य किरणों के समान और सेवक रूपी धान के पालन करने में मेघ के समान हैं॥

 

अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥

सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥

 

मनोवांछित वस्तु देने में श्रेष्ठ कल्पवृक्ष के समान हैं और सेवा करने में हरि-हर के समान सुलभ और सुख देने वाले हैं। सुकवि रूपी शरद् ऋतु के मन रूपी आकाश को सुशोभित करने के लिए तारागण के समान और श्री रामजी के भक्तों के तो जीवन धन ही हैं॥

 

शेष अगले प्रसंग में ————-

 

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥

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